हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन  दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले  बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़  वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता  अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल  जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना  दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता  डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज  मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'  कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था

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