हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक झलक को बेकरार हुए बैठे हैं, उनके नाजुक हाथों से सजा पाने को, कितनी सदियों से गुनाहगार हुए बैठे हैं।