कम से कम अपनी जुल्फे तो बाँध लिया करो। कमबख्त. बेवजह मौसम बदल दिया करते हैं।।

सुहाने मौसम में दिल भी कहीं भटक जाता है उस गली में ही कहि फिर से दिल अटक जाता है

सतरंगी अरमानों वाले, सपने दिल में पलते हैं, आशा और निराशा की, धुन में रोज मचलते हैं, बरस-बरस के सावन सोंचे, प्यास मिटाई दुनिया की, वो क्या जाने दीवाने तो सावन में ही जलते है।

जब तुम यूँ मुस्कुराते हुए आते हो, तो संग मौसम बाहर का लाते हो.

कोई मुझ से पूछ बैठा ‘बदलना’ किस को कहते हैं? सोच में पड़ गया हूँ मिसाल किस की दूँ? “मौसम” की या “अपनों” की!

सुहाना मौसम भी बिगड़ जाता है आँधियों के चलने से धोखेबाज भी बदल जाते है धोखेबाजियों के चलने से

तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद, काले स्याह बादल ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे।

विचार हो जैसा वैसा मंजर होता है, मौसम तो इंसान के अंदर होता है.

रुका हुआ है अज़ब धुप छाँव का मौसम, गुज़र रहा हैकोई दिल से बादलों की तरह..!!

जो आना चाहो हज़ारों रास्ते न आना चाहो तो हज़ारों बहाने। मिज़ाज-ऐ-बरहम , मुश्किल रास्ता बरसती बारिश और ख़राब मौसम।।

कोई गलती हो जाये तो डाट लिया करो