महावीर जयंती के बारे में कुछ रोचक बातें हैं:

महावीर जयंती जैन समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है।

इस पर्व को महावीर स्वामी जन्म कल्याणक के नाम से भी जाना जाता है। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं।

महावीर स्वामी का जन्म करीब 2600 साल पहले हुआ था। महावीर स्वामी का जन्म सिद्धार्थ नामक पुत्र के रूप में हुआ था।

महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ श्रीवत्स हुआ करता था। महावीर स्वामी के प्रेरणा से ‘पंचमहाव्रत’ (पंच प्रमोद, पंच संतोष, पंच प्रेम, पंच मोह, पंच मुक्ति) का प्रसिद्ध होना हुआ।

महावीर स्वामी को ‘निर्विकल्‍प’ (निरोपसक) कहा जाता है।

महावीर स्वामी के प्रेरणा से ‘पंचमहोत्‍सव’ (परमेष्‍ठि, पुन्‍नम्‍ति, पुन्‍नम्‍ति-पुन्‍नम्‍ति, पुन्‍नम्‍ति-पुन्‍नम्‍ति-पुन्‍नम्‍ति, पुन्‍नम्‍ति-पुन्‍नम्‍ति-पुन्

– सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।

– अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।

– अचौर्य - दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है। – अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।

– ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।