बारिश के दिनों की बात है वो याद आज भी खास है
हम दोनो नदी किनारे बैठें थे नदी बाहर बह रही थी अंदर जज्बात बह रहे थे
पेड़ों के पत्ते मानो हमारी खामोशी सुन रहे थे हल्की आवाज कर के हमारे दिल की बातें जुबान पर ला रहे थे
मुझे दो महीनों के लिए घर जाना था उसे ये वक्त मेरे बगैर गुजारना था
हर रविवार यहीं मिलने की आदत थी हमारी हाथों में हाथ थामे रहना जरूरत थी हमारी
बात बात पर मुझ को चिड़ा कर हंसाने वाला वो आज लबों पर चुप्पी रखे बैठा था
मैंने कहा जल्दी ही आउंगी, अपना खयाल रखना उसकी आंखे भर आई,
उन बूंदों में मैंने प्यार की गहराई देखी पेड़ों के पत्तों ने भी पीर पराई देखी
इन आँखो से बहते आँसू देख ना पाऐगे सोहनी सूरत पे यह आँसू अच्छे लगते नही तुम रानी हो अपने महलो की कोई आम नही अश्को की बूँदो पे कभी भी सपने टिकते नही