आकाश गंगा या क्षीरमार्ग उस आकाशगंगा (गैलेक्सी) का नाम है, जिसमें हमारा सौर मण्डल स्थित है।
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आकाशगंगा - गैस, धूल और अरबों सितारों का एक विशाल संग्रह होता है। जिसमे सभी तत्व गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ जुड़े होते है।
इसमें कई सूर्य, ग्रह, पिंड और उल्कायें शामिल होती है हमारा पृथ्वी जहा स्थित है। उसे मल्कीवे कहाँ जाता है। मल्कीवे शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है।
आकाशगंगाओं का आकार कुछ सौ मिलियन सितारों से लेकर एक सौ ट्रिलियन सितारों तक हो सकता है।
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आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है
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और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है।
क्षीरमार्ग में १०० अरब से ४०० अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग ५० अरब ग्रह के होने की संभावना है,
जिनमें से ५० करोड़ अपने तारों से 'जीवन-योग्य तापमान' की दूरी पर हैं।
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सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार, क्षीरमार्ग में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं।[
माना जाता है कि कई आकाशगंगाओं के केंद्रों पर सुपरमैसिव ब्लैक होल होते हैं। मिल्की वे के केंद्रीय ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से चार मिलियन गुना अधिक होता है।
हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग २२.५ से २५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं।
सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार, क्षीरमार्ग में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं।
रात में आकाश मे जितने भी तारे दीखते है वो सब मिल्की वे का हिस्सा होते है। मिल्की वे शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है।
संस्कृत और कई अन्य भाषाएं में हमारी गैलॅक्सी को "आकाशगंगा" कहते हैं जिसमें हम रहते है
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धरती जहा पर हम रहते है और इस से ही मिलते जुलते एक ओर ग्रह मंगल ग्रह जिस पर अभी वैज्ञानिको की खोज चल रही है
यहाँ हवा और पानी की खोज हो चुकी है और वैज्ञानिकों का कहना है कि ये हमारा नया ग्रह होने वाला है
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पुराणों में आकाशगंगा और पृथ्वी पर स्थित गंगा नदी को एक दुसरे का जोड़ा माना जाता था और दोनों को पवित्र माना जाता था।
आकाशगंगा एक सर्पिल (अंग्रेज़ी में स्पाइरल) गैलेक्सी है। इसके चपटे चक्र का व्यास (डायामीटर) लगभग १,००,००० (एक लाख) प्रकाश-वर्ष है
इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है के अगर हमारे पूरे सौर मण्डल के चक्र के क्षेत्रफल को एक रुपये के सिक्के जितना समझ लिया जाए तो उसकी तुलना में आकाशगंगा का क्षेत्रफल भारत का डेढ़ गुना होगा।
आकाशगंगा के चक्र की कोई ऐसी सीमा नहीं है जिसके बाद तारे एकदम न हों, बल्कि सीमा के पास तारों का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है।
क्योंकि मानव आकाशगंगा के चक्र के भीतर स्थित हैं, इसलिए हमें इसकी सही आकृति का अचूक अनुमान नहीं लगा पाए हैं।
हम पूरे आकाशगंगा के चक्र और उसकी भुजाओं को देख नहीं सकते। हमें हज़ारों अन्य गैलेक्सियों का पूरा दृश्य आकाश में मिलता है
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