और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा  राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन  दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया  वर्ना हम भी आदमी थे काम के

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम  वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले  ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं  अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर  लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले  बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं  अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

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