मुंजा-सरकड़ा विलुप्त होने का कारण हम खुद,”कला के माध्यम से सामाजिक बदलाव की कहानी,डेजर्ट फेलो – राकेश यादव की कलम से

मुंजा-सरकड़ा विलुप्त होने का कारण हम खुद,”कला के माध्यम से सामाजिक बदलाव की कहानी,डेजर्ट फेलो - राकेश यादव की कलम से
मुंजा-सरकड़ा विलुप्त होने का कारण हम खुद,”कला के माध्यम से सामाजिक बदलाव की कहानी,डेजर्ट फेलो - राकेश यादव की कलम से

मुंजा-सरकड़ा विलुप्त होने का कारण हम खुद,”कला के माध्यम से सामाजिक बदलाव की कहानी,डेजर्ट फेलो – राकेश यादव की कलम से

ivillagenetwor न्यूज़  बीकानेर। 09 जून 2023 :मेरा अस्तित्व तुम्हे पता है, मुझे सरकंडा, मुंजा बोलते है | मे घास का एक प्रकार हु,आज से लगभग 50 वर्ष से पहले मेरे सूखे घास की डंडी को नोख करके सही मे डूबा कर पेन की तरह उपयोग करते थे| मेरी बड़ी सुन्दर लिखावट होती थी लेकिन आज मुझे आप भूल गए लगता है| मे आपको याद दिला दू की कही – कही आजभी पश्चिमी राजस्थान मे छाज,खारी,मुड़ा,कुर्सी,झाड़ू,कलर कुंजी,माचे की रस्सी,झोपड़ा छपरा,बैलो के नाख की रस्सी,
नाम करण,शादी विवाह – घर के चारो कोनो पर बांधते है जिसे तनी कहते है और
मेरे से बनी वस्तुओ का उपयोग कृषि, पशुओ को चारा,घर की सुंदरता बढ़ाने और आपके घर मे अगर शादी हो तो मुहरत के समय मेरी बनाई गई ढाल का उपयोग किया जाता है|
लेकिन आज मुझसे सामान बनाने वाले कारीगर जैसे विलुप्त हो गए,उनके पास मुझे उपयोग करने और सामान बनाने का समय ही नहीं है | इसके पीछे की वजह है आप, आप अपके घर परिवार मे प्लास्टिक,रबर के सामान उपयोग करने लगे हो जिससे पर्यावरण को नुकशान है, जीव-जंतु को नुकशान है और मेरा अस्तित्व भी खो गया है| आज मुझे उगाया भी नहीं जाता और देख रेख भी नहीं होती जबकि मे तो आपको अपनी लकड़ी से सामान भी देता था पैसे भी देता था और पर्यावरण को स्वस्थ और सुरक्षित भी रखता था |आज मे पश्चिमी राजस्थान से विलुप्त होने की कगार पर हु और मेरे कलाकार और कलाकारी भी मरती नजर आ रही है|

मेरा नाम राकेश यादव है । मैं होशंगाबाद नर्मदापुरम संभाग मध्यप्रदेश से हु ! में पिछले 8 वर्षो से सामाजिक क्षेत्र मै बच्चो व युवाओ के साथ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का हिस्सा रहा हु ! साथ ही पिछले 5 वर्ष से,कला के माध्यम से,कला के क्षेत्र मै, कलाकारों के साथ, सामाजिक बदलाव की कहानी,को कला से जोड़कर देखा जाये और अपनी कला को सामाजिक बदलाव का हिस्सा बनाया जाये! पर कार्य किया है,में अभी फिल हाल राजस्थान में अरविन्द ओझा फेलोशिप उरमूल सीमांत समिति में एक वर्ष की फेलोशिप कर रहा हु जहा में घुमंतू पशुपालक और पशुपालन पर कहानिया लिख रह हु,साथ ही डेजर्ट और इंसानों के बिच जो सुबह की पहली किरण से रात चांदनी के सफर तक का जो संघर्ष है उससे सिख रहा हु!
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